Sunday, 31 January 2016
Friday, 13 September 2013
यदुवँशी क्षत्रियो के व्रष्णि,अन्धक व भोज ओर कुकुर यादव संघ
मधु राजा के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र एक यादवराज था। इसी के कुल में श्री कृष्ण पैदा हुए थे और इसी कारण वार्ष्णेय कहलाए। इनका वंश वृष्णि वंशीय यादव कहलाता था। ये लोग द्वारिका में निवास करते थे। प्रभास क्षेत्र में यादवों के गृह कलह में यह वंश भी समाप्त हो गया।
वृष्णि गणराज्य शूरसेन प्रदेश में स्थित था।वृष्णियो का तथा अंधकों का प्राचीन साहित्य में साथ साथ उल्लेख है।पाणिनि में वृष्णियों तथा अंधको का उल्लेख हैं।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कुकुर व वृष्णियों के संघ-राज्य का वर्णन है।
महाभारत में अंधक वृष्णियों का कृष्ण के संबंध में वर्णन है।
इसी प्रसंग में कृष्ण को संघ मुख्य भी कहा गया है जिससे सूचित होता है कि वृष्णि तथा अंधक गण जातियों के राज्य थे।
वृष्णि राजज्ञागणस्य भुभरस्य।यह सिक्का वृष्णि-गणराज्य द्वारा प्रचलित किया गया था और इसकी तिथि प्रथम या द्वितीय शती ई.पू. है।
अंधक एवं वृष्णि संघ सम्भवतः यदुवंशियों के राजा भीम सात्वत के पुत्रों के नाम पर बने थे।कृष्ण वृष्णि थे एवं उग्रसेन और कंस अंधक थे ।
मथुरा में तीर्थंकर नेमिनाथ भी अंधक कहे गये हैं।कुछ ग्रंथों में कृष्ण को अंधक भी कहा गया है।
मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियो की।
सुर्यवँशी श्री राम के पश्चात जब अयोध्या की गद्दी पर कुश थे और लव युवराज थे तब मथुरा में भीम के पुत्र अंधक राज्य करते थे । उनके बाद अंधक वंशियों का मथुरा पर अधिकार रहा था जो उग्रसेन और उनके पुत्र कंस तक कायम रहा था।
भीम के दूसरे पुत्र का नाम वृष्णि था।उनके वंश में उत्पन्न शूर ने शौरपुर (वर्तमान बटेश्वर) बसा कर अपना पृथक् राज्य स्थापित किया था।शूर के पुत्र वसुदेव हुए जिनके पुत्र बलराम तथा श्रीकृष्ण थे ।
वैदिक पुराण साहित्यो में उत्तरी पांचाल के पौरव राजा दिवोदास और उनके वंशज सुदास की विजय गाथाओं का उल्लेख मिलता है।सुदास ने हस्तिनापुर के पौरव राजा संवरण को उनके नौ साथी राजाओं की विशाल सेना सहित पराजित किया था।दस राजाओं के उस भीषण संघर्ष को प्राचीन वाग्मय में दाशराज्ञ युद्ध कहा गया है। वीरवर सुदास से पराजित होने वाले उन नौ राजाओं में एक यादव नरेश भी था।
यदुवँशियो के अंधक वृष्णि संघकी कार्यप्रणाली गणतंत्रात्मक थी और बहुत समय तक वह अच्छे ढंग से चलती रही। प्राचीन साहित्यिक उल्लेखों से पता चलता है कि अंधक वृष्णि संघ काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था।इसका मुख्य कारण यही था कि संघ के द्वारा गणराज्य के सिद्धांतों का सम्यक् रूप से पालन होता था तथा चुने हुए नेताओं पर विश्वास किया जाता था।ऐसा प्रतीत होता है कि कालांतर में अंधकों और वृष्णियों की अलग अलग मान्यताएँ हो गई और उनमें कई दल हो गये।प्रत्येक दल अब अपना राजनीतिक प्रमुख स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील रहने लगा।इनकी सभाओं में सदस्यों को जी भर कर आवश्यक विवाद करने की स्वतन्त्रता थी।एक दल दूसरे की आलोचना भी करता था।जिस प्रकार आजकल अच्छे से अच्छे सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी बुराइयाँ होती है।उसी प्रकार उस समय भी ऐसे दलगत आक्षेप हुआ करते थे।महाभारत के शांति पर्व के 82 वें अध्याय में एक ऐसे वाद-विवाद का वर्णन है जो तत्कालीन प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली का अच्छा चित्र उपस्थित करता है। यह वर्णन श्रीकृष्ण और नारद के बीच संवाद के रूप में दिया गया हैँ।
श्री कृष्णदत्त वाजपेयी का अनुमान है कि यादव राजा भीम सात्वत का पुत्र अंधक रहा होगा जो सुदास के समय यादवों की मुख्य शाखा का अधिपती और शूरसेन जनपद के तत्कालीन गणराज्य का अध्यक्ष था।वह संभवत: अपने पिता भीम के समान वीर नहीं था।अंधक के वंश में कुकुर हुआ था।कुकुर की कई पीढ़ी बाद आहुक हुआ जिसके दो पुत्र उग्रसेन और देवक हुए थे।उग्रसेन का पुत्र कंस था और देवक की पुत्री देवकीथी।उग्रसेन, देवक और कंस अपने पूर्वज अंधक और कुकुर के नाम पर अंधक वंशीय अथवा कुकुर वंशीय कहलाते थे।
अंधक के भाई वृष्णि के दो पुत्र हुए जिनके नाम देवमीढूष और युधाजित थे।देवमीढूष के पुत्र श्र्वफल्क और उनके पुत्र अक्रूर थे।वृष्णि के वंशज वाष्णि वंशीय अथवा वार्ष्णेय कहलाते थे।
अंधक और वृष्णि वंशिय द्वारा शासित शूरसेन प्रदेशांतर्गत मथुरा और शौरिपुर के दोनों राज्य गणराज्य थे।उनका शासन वंश परम्परागत न होकर समय-समय पर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा होता था।वे प्रतिनिधि अपने अपने गणों के मुखिया होते थे और राजा कहलाते थे।
महाभारत युद्ध से पूर्व उन दोनों राज्यों का संघ था जो कि अंधक-वृष्णि संघ' कहलाता था।उस संघ में अंधकों के मुखिया आहुक पुत्र उग्रसेन थे और वृष्णियों के शूरसेन पुत्र वसुदेव थे।उस संघीय गण राज्य का राष्ट्रपति उग्रसेन था।इस संघ राज्य के केंद्र मन्त्रियों में एक उद्धव भी थे।उग्रसेन की भतीजी देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था जिनके पुत्र भगवान कृष्ण थे।उग्रसेन के पुत्र कंस का विवाह उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली मगध साम्राज्य के अधिपति जरासंध की दो पुत्रियों के साथ हुआ था।वसुदेव की बहिन कुन्ती का विवाह कुरु प्रदेश के प्रतापी महाराजा पांडु के साथ हुआ था जिनके पुत्र सुप्रसिद्ध पांडव थे। वसुदेव की दूसरी बहिन श्रुतश्रवा हैहयवंशी चेदिराज दमघोष को ब्याही गयी थी जिसका पुत्र शिशुपाल था।इस प्रकार शूरसेन प्रदेश के यदुवँशियो का पारिवारिक संबंध भारतवर्ष के कई विख्यात राज्यों के अधिपतियों के साथ था।उग्रसेन का पुत्र कंस बड़ा शूरवीर और महत्त्वाकांक्षी युवक था । फिर उन्हें अपने श्वसुर जरासंध के अपार सैन्य बल का भी अभिमान था।वह गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र में विश्वास रखता था। उन्होंने अपने साथियों के साथ संघ राज्य के विरुद्ध कर उपद्रव करना आरम्भ किया।अपनी वीरता और अपने श्वसुर की सहायता से उन्होंने अपने पिता उग्रसेन और बहनोई वसुदेव को शासनाधिकार से वंचित कर उन्हें कारागृह में बन्द कर दिया और आप स्वयँ अंधक-वृष्णि संघ का स्वेच्छाचारी राजा बन गया था।वह यदुवँशियो से घृणा करता था और अपने को यदुवँशी मानने में लज्जित होता था।उसने मदांध होकर प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये थे।अंत में श्री कृष्ण द्वारा उनका अंत हुआ था।
साभार टिप्पणी और संदर्भ
1.पाणिनि 4,1,114 तथा 6,2,34
2.पृ0 12
3.'यादवा: कुकुरा भोजा: सर्वे चान्धकवृष्णय:, त्वय्यासक्ता: महाबाहो लोकालोकेश्वराश्च ये।'महाभारत शांति0 81,29
4 'भेदाद् विनाश: संघानां संघमुख्योऽसि केशव' शाति0 81,25 ।
5.मजुमदार-कार्पोरेअ लाइफ इन ऐंशेंट इंडिया–पृ0 280
यदुवँश एक परिचय
- महाराजा यदु एक चंद्रवंशी राजा थे। सोमवँश सिरोमणी सम्राट ययाति के पुत्र थेयदु कुल के प्रथम सदस्य माने जाते हैं।उनके वंशज जो कि यादव के नाम से जाने जाते हैं यदुवंशी के नाम से भी जाने जाते हैं। और भारत एवं निकटवर्ती देशों पाकिस्तान व अफगानिस्तान में काफी संख्या में पाये जाते हैं। उनके वंशजो में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं पौराणिक ग्रन्थ महाभारत के महानायक भगवान श्री कृष्णा महाराज यदु का वंश परम पवित्र और मनुष्यों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। जो मनुष्य इसका श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जायगा। इस वंश में स्वयं परमपुज्य भगवान श्री विष्णु ने क्रष्णा के रुप मे मनुष्य अवतार लिया था।महाराज यदुकुल शिरोमणि की वँशावली पर चर्चा करते हैँ।यदु के चार पुत्र थे- 1.सहस्त्रजित 2.क्रोष्टा 3.नल और 4.रिपुं1.सहस्त्रजित से शतजित का जन्म हुआ। शतजित के तीन पुत्र थे- 1.महाहय 2.वेणुहय और 3.हैहय ईनही से एक अलग वँश हैहयवँश चला।हैहय का धर्म,धर्म का नेत्र,नेत्र का कुन्ति,कुन्ति का सोहंजि, सोहंजि का महिष्मान और महिष्मान का पुत्र भद्रसेन हुआ।हैहयपति महाराज भद्रसेन के दो पुत्र थे- 1.दुर्मद और 2.धनक।धनक के चार पुत्र हुए- 1.कृतवीर्य, 2.कृताग्नि, 3.कृतवर्मा व 4.कृतौजा। कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। जिन्हे हैहयराज क्रतवीर्य अर्जुन के नाम से जाना जाता हैँ।वह सातों द्वीप का एकछत्र सम्राट था।उसने भगवान के अंशावतार श्री दत्तात्रेयजी से योगविद्या और अणिमा-लघिमा आदि बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं।इसमें सन्देह नहीं कि संसार का कोई भी सम्राट यज्ञ,दान,तपस्या,योग, शास्त्रज्ञान,पराक्रम और विजय आदि गुणों में कार्तवीर्य अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकेगा।सहस्त्रबाहु अर्जुन पचासों हज़ार वर्ष तक छहों इन्द्रियों से अक्षय विषयों का भोग करता रहा। इस बीच में न तो उसके शरीर का बल ही क्षीण हुआ और न तो कभी उसने यही स्मरण किया कि मेरे धन का नाश हो जायेगा।उसके धन के नाश की तो बात ही क्या है।उसका ऐसा प्रभाव था कि उसके स्मरण से दूसरों का खोया हुआ धन भी मिल जाता था।उसके हज़ारों पुत्रों में से केवल पाँच ही जीवित रहे। शेष सब परशुराम की क्रोधाग्नि में भस्म हो गये।अर्जुन के बचे हुए पुत्रों के नाम थे- 1.जयध्वज 2.शूरसेन 3.वृषभ 4.मधु और 5.ऊर्जित।अर्जुन के पुत्र जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ। तालजंघ के सौ पुत्र हुए। वे 'तालजंघ' नामक क्षत्रिय कहलाये।महर्षि और्व की शक्ति से सुर्यवँशी राजा सगर ने उनका संहार कर डाला।उन सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्र का पुत्र मधु हुआ। मधु के सौ पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि इन्हीं मधु, वृष्णि और यदु के कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।यदुनन्दन पुत्र क्रोष्टु के पुत्र का नाम था वृजिनवान। वृजिनवान का पुत्र श्वाहि, श्वाहि का रूशेकु,रूशेकु का चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र का नाम था शशबिन्दु वह परम योगी महान भोगैश्वर्य सम्पन्न और अत्यन्त पराक्रमी था। वह चौदह रत्नों का स्वामी चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय था।परम यशस्वी शशबिन्दु के दस हज़ार पत्नियाँ थीं। उनमें से एक एक के लाख लाख सन्तान हुई थीं।इस प्रकार उसके सौ करोड़ एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुईं। उनमें पृथुश्रवा आदि छ: पुत्र प्रधान थे।पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धर्म।धर्म का पुत्र उशना हुआ।उसने सौ अश्वमेध यज्ञकिये थे।उशना का पुत्र हुआ रूचक।रूचक के पाँच पुत्र हुए उनके नाम थे-1.पुरूजित,2.रूक्म, 3.रूक्मेषु,4.पृथु और 5.ज्यामघ।ज्यामघ की पत्नी का नाम था शैब्या। ज्यामघ के बहुत दिनों तक कोई सन्तान हुई। परन्तु उसने अपनी पत्नी के भय से दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार वह अपने शत्रु के घर से भोज्य नाम की कन्या हर लाया।जब शैब्या ने पति के रथ पर उस कन्या को देखा तब वह चिढ़कर अपने पति से बोली कपटी मेरी बैठने की जगह पर आज किसे बैठा कर लिये आ रहे हो ज्यामघ ने कहायह तो तुम्हारी पुत्रवधू है।शैब्या ने मुस्कुराकर अपने पति से कहा।मैं तो जन्म से ही बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। फिर यह मेरी पुत्रवधू कैसे हो सकती है।ज्यामघ ने कहा रानी तुम को जो पुत्र होगा उसकी यह पत्नी बनेगी। राजा ज्यामघ के इस वचन का विश्वेदेव और पितरों ने अनुमोदन किया।फिर क्या था समय पर शैब्या को गर्भ रहा और उसने बड़ा ही सुन्दर बालक उत्पन्न किया। उसका नाम हुआ विदर्भराज।उसी ने शैब्या की साध्वी पुत्रवधू भोज्या से विवाह किया।
Sunday, 11 August 2013
अदीति जिनसे देवताओं की उत्पति हुयी
देवमाता
अदिति देवी का परिचय अदिति संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'असीम' है।
दक्षप्रजापति की पुत्री थीं और कश्यप ॠषि को ब्याही थीं। अदिति को 'देवमाता' कहा गया
है।मित्र- वरुण, आदित्य, रुद्र, इन्द्र
आदि इन्हीं की संतान बताए गये हैं। आधुनिक दृष्टि से देखें तो अंतरिक्ष से इनका
बोध होता है जिसमें सभी आदित्य भ्रमण किया करते हैं। पौराणिक कथाओ मे देवमाता
अदिति पौराणिक कथाओं के वैदिक युग में असीम या अनंत का मानवीकृत रूप और आदित्य
नामक स्वर्ण के देवताओं के समूह की माता आदिम देवी के रूप में इन्हें विष्णु सहित
कई देवताओं की जननी माना गया है। अदिति आकाश को अवलंब प्रदान करती हैं। सभी जीवों
का पालन और पृथ्वी का पोषण करती हैं। इस रूप में इन्हें कभी कभी गाय के रूप में भी
दर्शाया जाता है।
देवमाता
अदिति के पुत्र आमतौर पर उनके पुत्र आदित्यों की संख्या 12 बताई जाती है। वरुण
इनमें प्रमुख हैं। और उनकी ही तरह उन्हें ऋतु (दैवी श्रेणी) का रक्षक माना जाता
है। एक श्लोक में उनके नाम वरुण,मित्र
आर्यमन, दक्ष, भग और
अंश बताए गए हैं। इनमें से कई बार दक्ष को हटाकर इन्द्र, सवितृ ( सूर्य) और धातृ को शामिल कर लिया जाता है। कभी-कभी
इस शब्द के व्यापक अर्थ में सभी देवताओं को शामिल कर लिया जाता है। जहाँ आदित्यों
की संख्या 12 मानी गई है। वहाँ उन्हें वर्ष के 12 सौर महीनों से जोड़ा जाता है।
एकवचन के रूप में आदित्य, सूर्य का
एक नाम है। वेदों में देवमाता अदिति वेद में अदिति को सीमाहीन बताया गया है। पुराण
तो आकाश, वायु, माता, पिता, सर्व
देवता,सर्व मानव, भूत, वर्तमान, भविष्य
सब कुछ अदिति को ही बताते हैं। कश्यप ॠषि की दो पत्नियाँ थीं- अदिति और दिति।
अदिति के गर्भ से देवता और दिति के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए। श्रीकृष्ण की माता
देवकी को 'अदिति का अवतार' बताया जाता हैं।
श्री कृष्णा का अवतार
पहली रानी मदिषा के गर्भ से शूर उत्पन्न हुए| शूर की पत्नी भोज राजकुमारी से दस पुत्र तथा पांच पुत्रियाँ उत्पन्न हूई जिनके नाम नीचे नाम नीचे लिखे गए है| उनके नामो के आगे उनसे उत्पन्न प्रसिद्द पुत्रो के नाम भी लिखे गए है:-
१. वासुदेव..वासुदेव -से श्रीकृष्ण और बलराम
२. देवभाग.. देवभाग-से उद्धव नामक पुत्र
३. देवश्रवा.. देवश्रवा-से शत्रुघ्न(एकलव्य) नामक पुत्र
४. अनाधृष्टि.. अनाधृष्टि-से यशस्वी नामक पुत्र हुआ
५. कनवक.. कनवक -से तन्द्रिज और तन्द्रिपाल नामक दो पुत्र
६. वत्सावान.. वत्सावान-के गोद लिए पुत्र कौशिक थे.
७. गृज्जिम.. गृज्जिम- से वीर और अश्वहन नामक दो पुत्र हुए
८. श्याम.. श्याम -अपने छोटे भाई शमीक को पुत्र मानते थे|
९. शमीक-के कोइ संतान नही थी।
१०. गंडूष.. गंडूष -के गोद लिए हुए चार पुत्र थे.
इनके अतिरिक्त शूर के पांच कन्याए भी उत्पन्न हुई थी जिनके नाम नीचे लिखे है| उनके नामो के आगे उनसे उत्पन्न प्रसिद्द पुत्रो के नाम भी लिखे गए है:-
१. पृथु की.. पृथुकी -से दन्तवक्र नामक पुत्र
२. पृथा (कुंती)
.. पृथा (कुंती)- से युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन नामक तीन पुत्र
३. श्रुतदेवा.. श्रुतदेवा - से जगृहु नामक पुत्र
४. श्रुतश्रवा.. श्रुतश्रवा - से चेदिवंशी शिशुपाल नामक पुत्र
५. राजाधिदेवीराजाधिदेवी - से विन्द और अनुविन्द नामक दो पुत्र हुए।
देविमूढस (देवमीढ़)की दूसरी रानी वैश्यवर्णा से पर्जन्य नामक पुत्र हुआ| पर्जन्य के नौ पुत्र हुए जिनके नाम इस प्रकार है:-
१.धरानन्द
२. ध्रुवनन्द
३. उपनंद
४. अभिनंद
५. सुनंद
६. कर्मानन्द
७. धर्मानंद
८. नन्द
.९. वल्लभ
इसे यों समझे:
(इस वँशावली में कुछ नाम छोड़ दिए गए है जिनके बारे मे ज्यादा पता नही होने के कारण आपके सुझाव आमत्रिँत हैँ केवल महत्वपूर्ण नामो के उल्लेख के लिए)
बाकि के नाम ईस प्रकार है:-
देवमीढ कीदो रानिया
१-मदिषा
२-वैश्यवर्णा
से शूरसेन से पर्जन्य से वसुदेव..देवभाग....पृथा...श्रुतश्रवा-------------------धरानन्द...ध्रुव...उप...अभि...सुनन्द
..v.........v..........v.......--.--.--.-.-....................--कर्मा...धर्मा...नन्द...बल्लभ्
..से .......से ......से ......से..
श्रीकृष्ण...उद्धव..पाण्डव..शिशुपाल
।
प्रदुम्न
।
अनिरुद्ध
।
ब्रजनाभि
श्रीकृष्ण आठ भाई थे| उनके नाम इस प्रकार है:-
१.कीर्तिमान
२.सुषेण
३.भद्रसेन
४.भृगु
५.सम्भवर्दन
६.भद्र
७.बलभद्र
और
८. श्रीकृष्ण|
इनमे से माता देवकी के छः पुत्रो को कंस ने जन्म के तुरंत बाद मार दिया था|
अन्धकवंशी मथुरा के तथा वृष्णिवंशी द्वारिकापुरी के शासक हुए|
मथुरा में जिस समय उग्रसेन और कंस थे उस समय द्वारिका में शूर के पुत्र वासुदेव जी राजा थे|
व्रष्णी वंश जिससे श्री कृष्णा का अवतार हुआ
सात्वत के पुत्रो से जो वंश परंपरा चली उनमें सर्वाधिक
विख्यात वंश का नाम है वृष्णि-वंश था। इसमें सर्वव्यापी भगवान श्री
कृष्ण ने अवतार लिया था जिससे यह वंश परम पवित्र हो गया। वृष्णि के दो रानियाँ थी -एक नाम था गांधारी और दूसरी का माद्री। माद्री के एक देवमीढुष नामक एक
पुत्र हुआ। देवमीढुष के भी मदिषा और
वैश्यवर्णा नाम की दो रानियाँ थी। देवमीढुष
की बड़ी रानी मदिषा के गर्भ दस पुत्र हुए, उनके नाम थे -वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, आनक, सुजग्य, श्यामक, कंक, शमीक,
वत्सक और वृक। उनमें वसुदेव जी सबसे बड़े थे। वसुदेव
के जन्म के समय देवताओं ने प्रसन्न होकर
आकाश से पुष्प की वर्षाकी थी और आनक तथा
दुन्दुभी का वादन किया था। इस कारण
वसुदेव जी को आनकदुन्दु भी कहा जाता है। श्रीहरिवंश पुराण में वसुदेव के
चौदह पत्नियों होने का वर्णन आता है उनमें रोहिणी, इंदिरा, वैशाखी, भद्रा और सुनाम्नी नामक पांच पत्नियाँ पौरव वंश से, देवकी
आदि सात पत्नियाँ अन्धक वंश से तथा सुतनु
तथा वडवा नामक, वासूदेव की देखभाल करने वाली,दो स्त्रियाँ अज्ञात अन्यवंश से थीं।
उग्रसेन के बड़े भाई देवक के देवकी
सहित सात कन्यायें थी। उन सबका विवाह
वसुदेव जी से हुआ था। देवक की छोटी कन्या
देवकी के विवाहोपरांत उसका चचेरा भाई कंस
जब रथ में बैठा कर उन्हें घर छोड़ने जा
रहा था तो मार्ग में उसे आकाशवाणी से यह
शब्द सुनाई पडे -हे कंस तू जिसे इतने
प्यार से ससुराल पहुँचाने जा रहा है उसी
के आठवे पुत्र के हाथों तेरी मृत्यु होगी।देववाणी सुनकर कंस अत्यंत भयभीत
हो गया और वसुदेव तथा देवकी को
कारागार में बंद कर दिया।महायशस्वी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी
कारागार में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने
देवकी के गर्भ से अवतार लिया और वसुदेव जी को
भगवान श्रीकृष्ण के पिता होने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ।वसुदेव के एक
पुत्र का नाम बलराम था। बलराम जी श्रीकृष्ण के
बड़े भाई थे। उनका जन्म वसुदेव की एक अन्य पत्नी रोहिणी के गर्भ से हुआ था।रोहिणी गोकुल में वसुदेव के
चचेरे भाई नन्द के यहाँ गुप्त रूप से रह रही थी। श्रीकृष्ण और बलराम की विस्तृत
जीवनी आपको आगे कही पर वर्णित करेँगे। देवमीढुष
की दूसरी रानी वैश्यवर्णा के गर्भ से पर्जन्य नामक पुत्र हुआ। पर्जन्य के नन्द
सहित नौ पुत्र हुए उनके नाम थे - धरानन्द, ध्रुवनन्द , उपनंद, अभिनंद,
.सुनंद, कर्मानन्द , धर्मानंद , नन्द और वल्लभ। नन्द
से नन्द वंशी यादव शाखा का प्रादुर्भाव
हुआ। नन्द और उनकी पत्नी यशोदा ने गोकुल
में भगवान श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया। इस कारण
वह आज भी परम यशस्वी और श्रद्धेय
हैं। वृष्णिवंश की इस वंशावली से ज्ञात
होता है कि वसुदेव और नन्द वृष्णि-वंशी
यादव थे और दोनों चचेरे भाई थे।
यादवो ने कालान्तर मे अपने केन्द्र दशार्न, अवान्ति, विदर्भ् एवं महिष्मती मे स्थापित कर लिए।बाद मे मथुरा और
द्वारिका यादवो की शक्ति के महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली केन्द्र बने। इसके अतिरिक्त
शाल्व मे भी यादवो की शाखा स्थापित हो गई।मथुरा महाराजा उग्रसेन के अधीन था और
द्वारिका वसुदेव के। महाराजा उग्रसेन का पुत्र कंस था और वासुदेव के पुत्र श्री
कृष्ण थे।
महाराज यदु से यदुवंश चला। यदुवंश मे यदु की कई पीढ़ियों के बाद भगवान् श्री
कृष्ण माता देवकी के गर्भ से मानव रूप में अवतरित हुए। पुराण आदि से प्राप्त
जानकारी के आधार पर सृष्टि उत्पत्ति से यदु तक और यदु से श्री कृष्ण के मध्य
यदुवँश वन्शावली इस प्रकार है:-
परमपिता नारायण
ब्रह्मा
अत्रि
चन्द्रमा
( चन्द्रमा से चद्र वंश चला)
बुध
पुरुरवा
आयु
नहुष
ययाति
यदु
(यदु से यदुवंश चला)
क्रोष्टु
वृजनीवन्त
स्वाहि (स्वाति)
रुषाद्धगु
चित्ररथ
शशविन्दु
पृथुश्रवस
अन्तर(उत्तर)
सुयग्य
उशनस
शिनेयु
मरुत्त
कन्वलवर्हिष
रुक्मकवच
परावृत्
ज्यामघ
विदर्भ्
कृत्भीम
कुन्ती
धृष्ट
निर्वृति
विदूरथ
दशाह
व्योमन
जीमूत
विकृति
भीमरथ
रथवर
दशरथ
येकादशरथ
शकुनि
करंभ
देवरात
देवक्षत्र
देवन
मधु
पुरूरवस
पुरुद्वन्त
जन्तु (अन्श)
सत्वन्तु
भीमसत्व
भीमसत्व के बाद यदवो की मुख्य दो शाखाए बन गयी
(1)-अन्धक ......और....(2)-बृष्णि
कुकुर......देविमूढस-(देविमूढस के दो रानिया थी)
धृष्ट .............................
कपोतरोपन......................
विलोमान........................
अनु................................
दुन्दुभि...........................
अभिजित.........................
पुनर्वसु.............................
आहुक..............................
उग्रसेन/देवक .....शूर
कन्स/देवकी ...वासुदेव
श्रीकृष्ण
ष्णि वंश
भीमसत्व के बाद यदुवँश राजवंशो की प्रधान शाखा से दो मुख्य शाखाए बन गई-पहला
अन्धक वंश और दूसरा वृष्णि वंश अन्धक वंश में कंस का जन्म हुआ तथा वृष्णि वंश में
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था
क्षत्रिय सम्राट यदु जिससे यादववंश की उत्पति हुयी
ययाति पुत्र यदु
यदुवंश के संस्थापक यदु महाराजा ययाति के पुत्र थे। उनका जन्म देवयानी के गर्भ से हुआ। यदु के वन्शज यदुवँशी कहलाए। महाराज ययाति के दो रानियाँ थी एक का नाम था देवयानी और दूसरी का शर्मिष्ठा । देवयानी के गर्भ से यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्र तथा शर्मिष्टा के गर्भ से दुह्यु,अनु और पुरू नामक तीन पुत्र हुए।
ययाति के पुत्रो से जो वंशज चले वे इस प्रकार है-
१.यदु से यदुवँश
२.तुर्वसु से यवन
३.दुह्यु से भोज
४.अनु से म्लेक्ष
५ पुरु से पौरववँश।
यदु के नाना शुक्राचार्य ने उनके पिता ययाति को श्राप दे दिया था जिससे वे असमय भरी जवानी में वृद्ध हो गए।राजा अपने बुढ़ापे से बहुत दुखी था। यदि कोई उन्हें अपनी जवानी देकर उनका बुढ़ापा ले लेता तो वे पुनः जवान हो सकते थे।राजा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र यदु को जवानी देकर बुढ़ापा लेने को कहा। किन्तु यदु ने इंकार कर दिया।तब उन्होंने दुसरे पुत्र तुर्वसु को कहा तो उसने भी इंकार कर दिया। इसी प्रकार महाराज ययाति के तीसरे और चौथे पुत्र ने भी इंकार कर दिया। तब राजा ययाति ने अपने कनिष्ठ पुत्र पुरु से पुछा तो वह सहर्ष जवानी के बदले बुढ़ापा लेने को सहमत हो गया। पुरु की जवानी प्राप्त कर ययाति पुनः तरुण हो गए। तरुणावस्था मिल जाने से वे बहुत काल तक यथावत विषयों को भोग करते रहे।
उस समय की परम्परा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण पिता के सन्यास लेने के बाद सिंहासन का असली हकदार यदु था। किन्तु यदु द्वारा अपनी जवानी न दिये जाने के कारण महाराजा ययाति उससे रुष्ट हो गये थे।इसलिये यदु को राज्य नही दिया। वे अपने छोटे बेटे पुरू को बहुत चाहते थे और उसी को राज्य देना चाहते थे।
राजा के सभासदो ने जयेष्ठ पुत्र के रहते इस कार्य का विरोध किया।किन्तु यदु ने अपने छोटे भाई का समर्थन किया और स्वयँ राज्य लेने से इन्कार कर दिया और । इस प्रकार ययाति ने अपने सबसे छोटे पुत्र पुरु को प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा का शासक बनाया।अन्य पुत्रों को दूर-दराज के छोटे छोटे प्रदेश सौंप दिये।
यदु को दक्षिण दिशा में चर्मणवती वर्तमान मथुरा का क्षेत्र व चम्बल का तटवर्ती प्रदेश मिला।वह अपने सब भाइयो मे श्रेष्ठ एवं तेजस्वी निकला। यदु का विवाह धौमवर्ण की पाँच कन्यायों के साथ हुआ था। श्रीमद भागवत महापुराण के अनुसार यदु के चार देवोपम पुत्र हुए जिनके नाम सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपु थे। इनमे से सहस्त्रजित और क्रोष्टा के वंशज पराक्रमी हुए तथा इस धरा पर ख्याति प्राप्त किया।
यदु के ज्येष्ठ पुत्र सहस्त्रजित के एक पौत्र का नाम था हैहय। हैहय के वंशज हैहयवंशी यादव क्षत्रिय कहलाए।
हैहय के हजारों पुत्र थे। उनमे से केवल पाँच ही जीवित बचे थे बाकी सब युद्ध करते हुए परशुराम के हाथों मारे गए।बचे हुए पुत्रों के नाम थे-जयध्वज, शूरसेन,वृषभ, मधु और ऊर्जित।
जयध्वज के तालजंघ नामक एक पुत्र था।
तालजंघ के वंशज तालजंघ क्षत्रिय कहलाये।
तालजंघ के भी सौ पुत्र थे उनमें से अधिकांश को सुर्यवँशी राजा सागर ने मार डाला था।
तालजंघ के जीवित बचे पुत्रों में एक का नाम था वीतिहोत्र।
वीतिहोत्र के मधु नामक एक पुत्र हुआ।
मधु के वंशज माधव कहलाये।
मधु के कई पुत्र थे। उनमें से एक का नाम था वृष्णि । वृष्णि के वंशज वाष्र्णेव कहलाये।
हैहय वंश का विस्तृत परिचय इस पोस्य पर ना करके किसी अन्य पोस्ट पर उल्लेखित करेगे।
यदु के दुसरे पुत्र का नाम क्रोष्टा था।
क्रोष्टा के बाद उसकी बारहवीं पीढी में 'विदर्भ' नामक एक राजा हुए।
विदर्भ के कश, क्रथ और रोमपाद नामक तीन पुत्र थे।
विदर्भ के तीसरेवंशधर रोमपाद के पुत्र का नाम था बभ्रु।
बभ्रु के कृति, कृति के उशिक और उशिक के चेदि नामक पुत्र हुआ।चेदि के नाम पर चेदिवंश का प्रादुर्भाव हुआ।
इसी चेदिवंश में शिशुपाल आदि उत्पन्न हुए।
विदर्भ के दुसरे पुत्र क्रथ के कुल में आगे चल सात्वत नामक एक प्रतापी राजा हुए।
उनके नाम पर यादवों को कई जगह सात्वतवंशी भी कहा गया है।
सात्वत के सात पुत्र थे। उनके नाम थे -भजमान, भजि, दिव्य, वृष्णि, देववृक्ष, महाभोज और अन्धक।
इनसे अलग अलग सात कुल चले।
उनमें से वृष्णि और अन्धक कुल के वंशज अन्य की अपेक्षा अधिक विख्यात हुए। वृष्णि के नाम पर वृष्णिवंश चला। इस वंश में लोक रक्षक भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था जिससे यह वंश परम पवित्र हो गया और इस धरा पर सर्वाधिक विख्यात हुआ।
श्रीकृष्ण की माता देवकी का जन्म अन्धक वंश में हुआ था।इस कारण अन्धक वंश ने भी बहुत ख्याति प्राप्त की।
अन्धक के वंशज अन्धकवंशी यादव कहलाये।अन्धक के कुकुर, भजमन, शुचि और कम्बलबर्हि नामक चार लड़के थे।
इनमें से कुकुर के वंशज बहुत प्रसिद्द हुए। कुकुर के पुत्र का नाम था वह्नि । वह्नि के विलोमा, विलोमा के कपोतरोमा और कपोतरोमा के अनु नामक पुत्र हुआ।अनु के पुत्र का नाम था अन्धक। अन्धक के पुत्र का नाम दुन्दुभि और दुन्दुभि के पुत्र का नाम था अरिद्योत।
अरिद्योत के पुनर्वसु नाम का एक पुत्र हुआ।
पुनर्वसु के दो संतानें थी- पहला आहुक नाम का पुत्र और दूसरा आहुकी नाम की कन्या।
आहुक के देवक और उग्रसेन नामक दो पुत्र हुए।
देवक के देववान, उपदेव, सुदेव,देववर्धन नामकचार पुत्र तथा धृत, देवा, शांतिदेवा, उपदेवा, श्रीदेवा, देवरक्षिता, सहदेवा और देवकी नामक चार कन्यायें थीं।
आहुक के छोटे बेटे उग्रसेन के कंस, सुनामा, न्यग्रोध, कंक, शंकु, सुहू,राष्ट्रपाल, सृष्टि और तुष्टिमान नामक नौ पुत्र और कन्सा, कंसवती, कंका, शुरभु और राष्ट्र्पालिका नामक पाँच कन्यायें।