Sunday, 11 August 2013

ययाति महान चन्द्रवंशी सम्राट

ययाति
ययाति राजा नहुष की रानी बिरजा के गर्भ से उत्पन्न पुत्र थे वे भारत के पहले चकर्वर्ती सम्राट हुये जिसने अपने राज्य का बहुत विस्तार किया॥ इनकी बुद्धि बड़ी तीव्र थी इसलिए इनके पिता नहुष को अगस्तय मुनि आदि ऋषियों ने इन्द्रप्रस्थ से गिरा दिया और अजगर बना दिया तथा इनके ज्येष्ठ भ्राता यति ने राज्य लेने से इन्कार कर दिया।तब ययाति राजा के पद पर बैठे।उन्होंने अपने चारों छोटे भाइयों को चार दिशाओ में नियुक्त कर दिया और आप शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह करके पृथ्वी की रक्षा करने लगे। देवयानी से दो पुत्र यदु और तुर्वसु हुए तथा शर्मिष्ठा से दुह्यु, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र हुए।
देवयानी के गर्भ से महाराज ययाति के यदु नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ और यदु से यदुवंश चला। महाराज ययाति क्षत्रिय थे तथा देवयानी ब्राह्मण पुत्री थी। यह असम्बद्ध विवाह कैसे हुआ?
देवयानी और शर्मिष्ठा कौन थी?
इसका विवरण इस प्रकार है:- शर्मिष्ठा दैत्यों के राजा वृषपर्वा की कन्या थी। वह अति माननी अति सुंदर राजपुत्री थी।राजा को शर्मिष्ठा से विशेष स्नेह था। पुराणों के अनुसार शुक्राचार्य दैत्यों के राजगुरु एवं पुरोहित थे।देवयानी उन्ही दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी तथा शर्मिष्ठा की सखी थी। रूप-लावण्य में देवयानी शर्मिष्ठा से किसी प्रकार से कम न थी। देवयानी और शर्मिष्ठा दोनों महाराज ययाति की पत्नियाँ थी। ययाति क्षत्रिय थे तथा देवयानी ब्राहमण पुत्री थी तो यह असम्बद्ध विवाह कैसे हुआ?
इस विषय में कहा जाता है कि एक दिन शर्मिष्ठा अपनी हजारो सखियों के साथ नगर के उपवन में टहल रही थी उनके साथ गुरु पुत्री देवयानी भी थी उस उपवन में सुंदर सुंदर सुहावने पुष्पों से लदे हुए अनेको वृक्ष थे उसमे एक सुंदर सरोवर भी था सरोवर में सुंदर सुंदर मनमोहक कमल खिले हुए थे उनपर भौरे मधुरता पूर्वक गुंजार कर रहे थे इस सरोवर पर पहुचने पर सभी कन्याओ ने अपने अपने वस्त्र उतारकर किनारे रख दिया और आपस में एक दूसरे पर जल छिड़कती हुई जलविहार करने लगी उसी समय भगवान शंकर पार्वती के साथ उधर से निकले तो भगवान शकँर को आता देख सभी कन्याये लज्जावश दौड़ कर अपने अपने वस्त्र पहनने लगी जल्दी में भूलवश शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए इस पर देवयानी क्रोधित हो कर बोली ये शर्मिष्ठा तु एक असुर पुत्री होकर तुमने ब्रह्मण पुत्री के वस्त्र पहनने का साहस कैसे किया?
जिन ब्राह्मणों ने अपने तपोबल से इस संसार की सृष्टि की है बड़े-बड़े लोकपाल तथा देव इंद्र आदि जिनके चरणों की वंदना करते है उन्ही ब्राह्मणों में श्रेष्ट हम भृगुवंशी है मेरे वस्त्र धारण करके तूने मेरा अपमान किया है देवयानी के अपशब्दों को सुनकर शर्मिष्ठा तिलमिला गयी और क्रोधित होकर देवयानी को कहा ये भिखारिन आप तूने अपने आप को क्या समझा है? तुझे कुछ पता भी है कि नही है? जैसे कौए और कुत्ते हमारे दरवाजे पर रोटी के टुकड़ो के लिए ताकते रहते है उसी तरह तू अपने बाप के साथ मेरी रसोई की तरफ देखा करती है क्या मेरे ही दिए हुए टुकडो से तेरा शरीर नहीं पला?
यह कहकर शर्मिष्ठा ने देवयानी के पहने हुए कपडे छीन कर उसे नंगी ही उपवन के एक कुएं में ढकेलवा दिया देवयानी को कुएं में ढकेलकर शर्मिष्ठा सखियों को लेकर घर चली आयी।
संयोगवश राजा ययाति उस समय वन में शिकार खेलने गए हुए थे और वे उधर से गुजर रहे थे उन्हें बड़ी प्यास लगी थी पानी की खोज करते हुए वे उसी कुएं के पास गए जिसमे देवयानी को धकेल दिया गया था उस समय वह कुए में नंगी खड़ी थी राजा ययाति ने उसे पहनने के लिए अपना दुपट्टा दिया और दया करके अपने हाथ से उसका हाथ पकड़कर कुएं से बहार निकाल लिया कुए से बहार निकलने पर देवयानी ने ययाति से कहा हे वीर जिस हाथ को तुमने पकड़ा है उसे अब कोइ दूसरा न पकडे। मेरा और आपका सम्बन्ध ईश्वरकृत है मनुष्यकृत नहीं निसंदेह मै बाह्मण पुत्री हूँ लेकिन मेरा पति ब्रह्मण नहीं हो सकता क्योकि वृहस्पति के पुत्र कच ने ऐसा श्राप दिया है कि देवयानी के ऐसा कहने पर राजा न चाहते हुए भी दैव की प्रेरणा से ययाति उसकी बात मान गए इसके बाद ययाति अपने घर चले गये उधर देवयानी रोती हुई अपने पिता शुक्राचार्य के पास आई और शर्मिष्ठा ने जो कुछ किया था वह कह सुनाया पुत्री की दशा देख कर शुक्राचार्य का मन उचाट गया वे पुरोहिती की निंदा करते हुए तथा भिक्षा वृति को बुरी कहते हुए अपनी बेटी देवयानी को साथ लेकर नगर से बाहर चले गए यह समाचार जब वृषपर्वा ने सुना तो उनके मन में शंका हुई कि गुरूजी कही शत्रुओ से मिलकर उनकी जीत न करवा दे अथवा मुझे शाप न दे दें तो वो ऐसा विचार करके अपने पिता के साथ गुरूजी के पास आयी और मस्तक नवाकर पैरो में गिरकर क्षमा याचना किया तब शुक्राचार्य जी बोले हे राजन आप मेरी पुत्री देवयानी को मना लो वह जो कहे उसे पूरा करो वृषपर्वा ने कहा बहुत अच्छा तब देवयानी बोलीं मै पिता की आज्ञा से जिस पति के घर जाऊं अपनी सहेलियों के साथ आपकी पुत्री शर्मिष्ठा उसके यहाँ पर दासी बनकर रहे शर्मिष्ठा इस बात से बहुत दुखी हुई परन्तु यह सोच कर देवयानी की शर्त मान ली कि इससे मेरे पिता का बहुत काम सिद्ध होगा तब शुक्राचार्य ने देवयानी का विवाह ययाति के साथ कर दिया एक हज़ार सहेलियों सहित शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनाकर उसके घर भेज दिया समय बीतता गया देवयानी लगन के साथ पत्नी-धर्म का पालन करते हुए महाराज ययाति के साथ रहने लगी शर्मिष्ठा सहेलियों सहित दासी की भाति देवयानी की सेवा करने लगी।
शर्मिष्ठा राजा ययाति की पत्नी कैसे बनी?
आगे की पंक्तियों में इसका संक्षिप्त वर्णन किया गया है कुछ दिनों के बाद देवयानी पुत्रवती हो गई| देवयानी को संतान देख शर्मिष्ठा ने भी संतान प्राप्ति के उद्देश्य से राजा ययाति से एकांत में सहवास की याचना की| इस प्रकार की याचना को धर्म-संगत मानकर शुक्राचार्य की बात याद रहने पर भी उचित काल पर राजा ने शर्मिष्ठा से सहवास किया| इस प्रकार देवयानी से यदु और तुर्वसु नामक दो पुत्र हुए तथा शर्मिष्ठा से दुह्यु, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र हुए|
जब देवयानी को ज्ञात हुआ कि शर्मिष्ठा ने मेरे पति द्वारा गर्भ धारण किया था तो वह क्रुद्ध हो कर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गयी| राजा ययाति भी उसके पीछे- पीछे गया| उसे वापस लाने के लिए बहुत अनुनय-विनय किया परन्तु देवयानी नही मानी| जब शुक्राचार्य को सारा वृतांत मालुम हुआ तो क्रोधित होकर बोले हे स्त्री लोलुप तू मंद बुद्धि और झूठा है| जा ओर मनुष्यों को कुरूप करने वाला तेरे शरीर में बुढ़ापा आ जाये| तब ययाति जी बोले हे ब्राह्मण श्रेष्ठ मेरा मन आपकी पुत्री के साथ सहवास करने से अभी तृप्त नहीं हुआ है|इस शाप से आपकी पुत्री का भी अनिष्ट होगा|मेरी पुत्री का अनिष्ट होगा ऐसा सोचकर बुढ़ापा दूर करने का उपाय बताते हुए शुक्राचार्य जी बोले जाओ यदि कोई प्रसन्नता से तेरे बुढ़ापे को लेकर अपनी जवानी दे दे तो उससे अपना बुढ़ापा बदल लो|
यह व्यवस्था पाकर राजा ययाति अपने राज महल वापस आए| बुढ़ापा बदलने के उद्देश्य से वे अपने ज्येष्ठ पुत्र यदु से बोले बेटा तुम अपनी तरुणावस्था मुझे दे दो तथा अपने नाना द्वारा शापित मेरा बुढ़ापा स्वीकार कर लो| तब यदु बोले पिताजी असमय आपकी वृद्धावस्था को मै लेना नहीं चाहता क्योकि बिना भोग भोगे मनुष्य की तृष्णा नहीं मिटती है|इसी तरह तुर्वसु,, दुह्यु और अनु ने भी अपनी जवानी देने से इन्कार कर दिया| तब राजा ययाति ने अपने कनिष्ठ पुत्र पुरु से कहा हे पुत्र तुम अपने बड़े भाइयो की तरह मुझे निराश मत करना| पुरु ने अपने पिता की इच्छा के अनुसार उनका बुढ़ापा लेकर अपनी जवनी दे दिया| पुत्र से तरुणावस्था पाकर राजा ययाति यथावत विषयों का सेवन करने लगे| इस प्रकार वे प्रजा का पालन करते हुए एक हज़ार वर्ष तक विषयों का भोग भोगते रहे परन्तु भोगो से तृप्त न हो सके|
राजा ययाति का गृह त्याग
इस प्रकार स्त्री आसक्त रहकर विषयों का भोग करते हुए राजा ययाति ने देखा कि इन भोगो से मेरी आत्मा नष्ट हो गयी है। सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गयी है| तब वे वैराग्ययुक्त अपनी प्रिय पत्नी देवयानी से कहने लगे हे प्रिय मेरी तरह आचरण करने वाले की मैं एक कथा कहता हूँ इसे ध्यान पूर्वक सुनना| पृथ्वी पर मेरे ही समान विषयी का यह सत्य इतिहास है| एक बकरा था| वह अकेला वन में अपने प्रिय पात्र को ढूंढता फिरता था| एक दिन उसने एक कुएं में गिरी हुई एक बकरी को देखा| बकरे ने उसे बाहर निकलने का उपाय सोच अपनी सीगों से मिट्टी खोद कर वहाँ तक पहुँचाने का मार्ग बनाया तथा उसी मार्ग से उसे बाहर निकाला| कुएं से बाहर निकल कर बकरी उसी बकरे से सनेह करने लगी तथा उसे अपना पति बना लिया| वह बकरा बड़ा हृष्ट-पुष्ट, जवान, व्यहारकुशल , वीर्यवान तथा मैथुन में निपुण था| जब दूसरी बकरियों ने देखा कि कुएं में गिरी हुई बकरी से उसका प्रगाढ़ प्रेम सम्बन्ध चल रहा है तो उन्होंने भी उसे अपना पति बना लिया| वह उन बकरियों के साथ कामपाश में बंधकर अपनी सुधबुध खो बैठा| कुए से निकाली हुई बकरी ने जब अपने पति दूसरी बकरोयों के साथ रमण करते हुए देखा तो वह क्रोध से आग बबूला हो गयी| वह उस कामी बकरे को छोडकर बड़े दुःख से अपने पलने के पास चली गयी| वह कामी बकरा भी उसके पीछे-पीछे गया परन्तु मार्ग में उसे मना न सका| उस बकरी के मालिक को जब सारा वृतांत ज्ञात हुआ तो उसने क्रोध में आकर बकरे के लटकते हुए अंडकोष को काट दिया| परन्तु इससे बकरी का भी बुरा होगा यह सोचकर उसने अंडकोष पुनः जोड़ दिया| अंडकोष जुड़ जाने पर वह बकरा बहुत काल तक उस बकरी के साथ विषय भोग करता रहा परन्तु काम पिपासा से कभी तृप्त नहीं हुआ| हे देवयानी! यैसे ही मैं तुम्हारे प्रेमपाश में बंधकर अपनी आत्मा भूल गया हूँ| विषय-वासना से युक्त पुरुष को पृथ्वी के सभी यैश्वर्य, धन-धन्य मिलकर भी तृप्त नहीं कर सकते| क्योंकि विषय को जितना भोगते जाओ तृष्णा उतनी ही बढ़ती जाती है| जैसे अग्नि में घी डालने पर वह बुझती नहीं है। बल्कि ज्यो-ज्यो घी डालते जाओ त्यों त्यों वह भड़कती जाती है| इसी प्रकार भोगों को जितना भोगते जाओ तृष्णा उतनी ही बढ़ती जाती है कम नहीं होती| शरीर बूढा हो जाने पर भी भोग विलास की इच्छा समाप्त नहीं होती है बल्कि नित्य नई इच्छाएं जागृत हो जाती हैं| जो मनुष्य अपना कल्याण चाहता है उसे शीघ्र ही भोग-वासना की तृष्णा का त्याग कर देना चाहिए| मैंने हज़ार वर्ष तक विषयों का भोग किया तथापि दिन प्रतिदिन भोगों की चाहत बढ़ती जा रही है| इसलिए अब मैं इनका त्याग कर ब्रह्म में चित्त लगाकर निर्द्वंद विचरण करूँगा| इस प्रकार महाराज ययाति ने अपनी पत्नी देवयानी को समझाकर पुरु को उसकी जवानी लौटा दिया तथा उससे अपना बुढ़ापा वापस ले लिया| तदोपरांत उन्होंने अपने पुत्र दुह्यु को दक्षिण-पूर्व की दिशा में तथा यदु को दक्षिण दिशा में व तुर्वसु को पश्चिम दिशा में और अनु को उत्तर दिशा में राजा बना दिया|पुरु को राज सिंहासन पर बिठाकर उसके सब बड़े भईयों को उसके अधीन कर स्वयँ वन को चले गए| वहां जाकर उन्होंने ऐसी आत्म आराधना की जिससे अल्प काल में ही परमात्मा से मिलकर मोक्षधाम को प्राप्त हुए| देवयानी भी सब राज नियमों से विरक्त होकर भगवान का भजन करते हुए परमात्मा में लीन हो गयी| महाराज ययाति के पांच पुत्र हुए जिसमे यदु और तुर्वसु महारानी देवयानी के गर्भ से तथा दुह्यु व अनु और पुरु शर्मिष्ठा के गर्भ से उत्पन्न हुए।

8 comments :

Unknown said...

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बड़ी लम्बी इतिहासिक घटना का बर्णन किया सा.. बहुत लब्धता से किया गया इतिहास प्रस्तुतिकरण सराहनीय है। धन्यवाद।
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jagmalsingh81@gmail.com said...

बहुत ही सराहनिय परसतुती शिक्षा प़द

Gyan Darpan said...

अच्छा प्रयास ! जारी रखें :)

Unknown said...

बहुत ही सराहनीय। आशा है जारी रखेंगे :)

राजपुताना इतिहास के विलुप्त अध्याय said...

@ यशवंत सा दादा धन्यवाद सा अपनी पर्तीकिर्या देने के लिए...

राजपुताना इतिहास के विलुप्त अध्याय said...

@जगमाल सिंह ददोभई सा आभार सा.....

राजपुताना इतिहास के विलुप्त अध्याय said...

@रतन सिंह जी काकोसा सादरपरणाम सा आपको...हुकुम आगे भी जारी जरुर रखूँगा सा..

राजपुताना इतिहास के विलुप्त अध्याय said...

@राघवेन्द्र सिंह राजपुर हुकुम बहुत बहुत आभार सा आपका ब्लॉग पर पधारने के लिए..

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