Sunday, 11 August 2013

चन्द्रमा जिनसे चन्द्रवंश क्षत्रियों की उत्पत्ति हुयी

चन्द्रदेव चन्द्रमा से मनुष्य बहुत प्रभावित रहा है। जीवन के हर पहलू में चन्द्रमा को उसने स्वयं से जोड़ कर रखा। मनुष्य ने विभिन्न लक्षणों के आधार पर चन्द्रमा के बहुत से वैकल्पिक नाम तो रखे ही साथ ही विशिष्ट कुल-परंपरा से भी चन्द्रमा को जोड़ा। चंद्रवंशी ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है। जिसका नाम 'सोम' है। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियां थीं जिनके नाम पर सत्ताईस नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। चन्द्रमा का इनमें से रोहिणी के प्रति विशेष अनुराग था। चन्द्रमा के इस व्यवहार से अन्य पत्नियां दुखी हुईं तो दक्ष ने उसे शाप दिया कि वह क्षयग्रस्त हो जाए जिसकी वजह से पृथ्वी की वनस्पतियां भी क्षीण हो गईं। विष्णु के बीच में पड़ने पर समुद्र मंथन से चन्द्रमा का उद्धार हुआ और क्षय की अवधि पाक्षिक हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार चन्द्रमा ने वृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया था जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे। अन्य नाम इसी तरह चंद्र से जुड़ा एक अन्य नाम सोमवंशी भी है। चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम भी सोम माना जाता है जिसका प्रयाग पर शासन था। ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि से संबंधित या अत्रि की संतान। चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए। चंद्रवंशियों का एक अन्य उपनाम अत्रिज भी होता है जिसका अर्थ हुआ अत्रि से जन्मा यानी चंद्र। एक अन्य गोत्र होता है चांद्रात अर्थात चंद्र से संबंधित। अत्रि को ब्रह्मा के नेत्रों से उत्पन्न बताया गया है। इसी तरह अत्रि पुत्र सोम या चन्द्रमा को भी अत्रि के नेत्रों से जन्मा बताया गया है इसलिए उसे अत्रिनेत्रज भी कहा जाता है। चन्द्रमा का एक अन्य नाम है सुधाकर या सुधांशु। इस नाम में भी जल तत्त्व की उपस्थिति नज़र आ रही है जो चन्द्रमा की पहचान है। सुधा का अर्थ भी अमृत, मधुर तरल ही होता है। इसका अर्थ जल भी है। पृथ्वी पर अगर अमृत है तो वह जल ही है। सुधा को देवताओं का पेय कहा गया है जो अमृत ही होता है। सोम का दूसरा नाम भी अमृत और जल ही है। सुधांशु का अर्थ हुआ जिसकी किरणें अमृत समान हैं। सुधाकर यानी अमृत मय करने वाला। सुधा का एक अर्थ श्वेत-धवल-उज्ज्वल भी होता है। चांदनी ऐसी ही होती है। सुधा चूने की सफ़ेदी या ईंट को भी कहते हैं। सुधा यानी जल, आर्द्रता, शीतलता का भंडार होने की वजह से इसका एक नाम सुधानिधि भी है। रात्रि को प्रकाशित करने की वजह से इसका एक नाम निशापति भी है।
चंद्रमा चंद्रमा अत्रि मुनि का पुत्र था। चन्द्रमा को ब्रह्मा का अंशावतार भी माना जाता है। प्रजापति ब्रह्मा ने उन्हें औषधियों का स्वामी बनाया। चंद्रमा ने अपने राज्य की महिमा बढ़ाने के लिए एक बार राजसूय यज्ञ किया।तत्पश्चात वे इतनामदोन्मत होगये कि देवताओं के गुरु वृहस्पति कीतारा नामक सुंदर पत्नी का हरण कर लिया। देव ऋषि वृहस्पति ने अपनी पत्नी को पुनः प्राप्त करने के बहुतप्रयास किये किन्तु सफल नहीं हुए।तब बीच बचाव के उद्देश्य से वे देवताओं के राजा इंद्र के पास गए। देवेन्द्र ने चंद्रमा को समझाते हुएतारा को लौटाने के लिए कहा किन्तु वेनहीं माने। तदोपरांत ब्रह्मा आदि अन्य देवताओं ने भी उनको बहुत समझाया. परन्तु चंद्रमा ने वृहस्पति की पत्नी को लौटने से इंकार कर दिया. इस पर देवराज इंद्र सेना लेकर चंद्रमा से लड़ने को आमादा हो गए। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। वेदेवगुरु वृहस्पति से द्वेष मानते थे जिस कारण चंद्रमा की सहायता के लिए सेना लेकर वे मैदान में आ डेट। शुक्राचार्य की सेना में जम्भ, कुम्भजैसे भयंकर दैत्य शामिल थे। तारा के लिए देवताओं और असुरों में घोर संग्राम छिड़ गया। देवासुर संग्राम इतना भयंकर था कि उससे संसार के समस्त प्राणी क्षुब्ध हो गए। वे सब इकट्ठे होकर ब्रह्मा जी की शरण में गए। तब भगवान ब्रह्माजी ने बीच-बचावकरते हुए शुक्र, रूद्र, देव, दानव सब में समझौता करा दिया। तारा पुनः देवऋषि वृहस्पति को मिल गयी। तारा उस समय गर्भवती थी। उसको गर्भावस्था में देख वृहस्पति क्रोधित हो गए और धमकाते हुए कहा -"मेरे क्षेत्र में दूसरे का गर्भ सर्वथा अनुचित है, इसे शीघ्र दूर करो।" . वृहस्पति के ऐसा कहने पर तारा ने झाड़ियों के मध्य जाकर गर्भ को गिरा दिया। जिस गर्भ को तारा ने झाड़ियों में त्यागा वह अत्यंत सुंदर तेजधारी बालक निकला। वह इतना रूपवान था कि उसके समक्ष समस्त देवताओं का तेज फीका प्रतीत होता था। उस सुंदर एवं तेजधारी बालक को देख कर चंदमा और वृहस्पति दोनों ने अपना पुत्र बनाना चाहा। उसको पाने कीउन दोनों की इस उत्सुकता को देख कर देवताओं के मन में संदेह उत्पन्न हो गया। तब वे तारा से पूछने लगे-"देवी! सत्य बताओ तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न यह पुत्र किसका है?" किन्तुलज्जावश तारा चुपचाप यथावत खड़ी रही और कुछ बोल नहीं सकी। देवताओं के बार-बार पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया. इस पर तारा का वह बालक कुपित होकर कहने लगा- " शीघ्र पूर्ण सत्य वर्णन करो नहीं तो मै तुम्हे भयंकर शाप दे दूंगा।" ब्रह्मा जी ने उस बालक को शाप देने से मना किया और स्वयं तारा से सच्चाई पूछने लगे। तब तारा बोली - "यह बालक चन्द्र्मा का पुत्र है।" तारा के मुख से यह शब्द सुनकर चंद्रमा बहुत प्रसन्न हुए और उस बालक को गले लगाते हुए बोले- "अति उत्तम वत्स! तुम बहुत बुद्धिमान हो इस लिए मैं तुम्हारा नाम "बुध" रखता हूँ।" इस प्रकार चंद्रमा का यह पुत्र बुध के नाम से विख्यात हुआ।

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