Friday, 13 September 2013

यदुवँश एक परिचय


  • महाराजा यदु एक चंद्रवंशी राजा थे। सोमवँश सिरोमणी सम्राट ययाति के पुत्र थे 
    यदु कुल के प्रथम सदस्य माने जाते हैं।उनके वंशज जो कि यादव के नाम से जाने जाते हैं यदुवंशी के नाम से भी जाने जाते हैं। और भारत एवं निकटवर्ती देशों पाकिस्तान व अफगानिस्तान में काफी संख्या में पाये जाते हैं। उनके वंशजो में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं पौराणिक ग्रन्थ महाभारत के महानायक भगवान श्री कृष्णा महाराज यदु का वंश परम पवित्र और मनुष्यों के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है। जो मनुष्य इसका श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जायगा। इस वंश में स्वयं परमपुज्य भगवान श्री विष्णु ने क्रष्णा के रुप मे मनुष्य अवतार लिया था।
    महाराज यदुकुल शिरोमणि की वँशावली पर चर्चा करते हैँ।
    यदु के चार पुत्र थे- 1.सहस्त्रजित 2.क्रोष्टा 3.नल और 4.रिपुं
    1.सहस्त्रजित से शतजित का जन्म हुआ। शतजित के तीन पुत्र थे- 1.महाहय 2.वेणुहय और 3.हैहय ईनही से एक अलग वँश हैहयवँश चला।हैहय का धर्म,धर्म का नेत्र,नेत्र का कुन्ति,कुन्ति का सोहंजि, सोहंजि का महिष्मान और महिष्मान का पुत्र भद्रसेन हुआ।
    हैहयपति महाराज भद्रसेन के दो पुत्र थे- 1.दुर्मद और 2.धनक।
    धनक के चार पुत्र हुए- 1.कृतवीर्य, 2.कृताग्नि, 3.कृतवर्मा व 4.कृतौजा। कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। जिन्हे हैहयराज क्रतवीर्य अर्जुन के नाम से जाना जाता हैँ।वह सातों द्वीप का एकछत्र सम्राट था।उसने भगवान के अंशावतार श्री दत्तात्रेयजी से योगविद्या और अणिमा-लघिमा आदि बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं।इसमें सन्देह नहीं कि संसार का कोई भी सम्राट यज्ञ,दान,तपस्या,योग, शास्त्रज्ञान,पराक्रम और विजय आदि गुणों में कार्तवीर्य अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकेगा।सहस्त्रबाहु अर्जुन पचासों हज़ार वर्ष तक छहों इन्द्रियों से अक्षय विषयों का भोग करता रहा। इस बीच में न तो उसके शरीर का बल ही क्षीण हुआ और न तो कभी उसने यही स्मरण किया कि मेरे धन का नाश हो जायेगा।उसके धन के नाश की तो बात ही क्या है।उसका ऐसा प्रभाव था कि उसके स्मरण से दूसरों का खोया हुआ धन भी मिल जाता था।उसके हज़ारों पुत्रों में से केवल पाँच ही जीवित रहे। शेष सब परशुराम की क्रोधाग्नि में भस्म हो गये।
    अर्जुन के बचे हुए पुत्रों के नाम थे- 1.जयध्वज 2.शूरसेन 3.वृषभ 4.मधु और 5.ऊर्जित।
    अर्जुन के पुत्र जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ। तालजंघ के सौ पुत्र हुए। वे 'तालजंघ' नामक क्षत्रिय कहलाये।महर्षि और्व की शक्ति से सुर्यवँशी राजा सगर ने उनका संहार कर डाला।उन सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्र का पुत्र मधु हुआ। मधु के सौ पुत्र थे। उनमें सबसे बड़ा था वृष्णि इन्हीं मधु, वृष्णि और यदु के कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
    यदुनन्दन पुत्र क्रोष्टु के पुत्र का नाम था वृजिनवान। वृजिनवान का पुत्र श्वाहि, श्वाहि का रूशेकु,रूशेकु का चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र का नाम था शशबिन्दु वह परम योगी महान भोगैश्वर्य सम्पन्न और अत्यन्त पराक्रमी था। वह चौदह रत्नों का स्वामी चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय था।परम यशस्वी शशबिन्दु के दस हज़ार पत्नियाँ थीं। उनमें से एक एक के लाख लाख सन्तान हुई थीं।इस प्रकार उसके सौ करोड़ एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुईं। उनमें पृथुश्रवा आदि छ: पुत्र प्रधान थे।पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धर्म।धर्म का पुत्र उशना हुआ।उसने सौ अश्वमेध यज्ञकिये थे।उशना का पुत्र हुआ रूचक।रूचक के पाँच पुत्र हुए उनके नाम थे-1.पुरूजित,2.रूक्म, 3.रूक्मेषु,4.पृथु और 5.ज्यामघ।
    ज्यामघ की पत्नी का नाम था शैब्या। ज्यामघ के बहुत दिनों तक कोई सन्तान हुई। परन्तु उसने अपनी पत्नी के भय से दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार वह अपने शत्रु के घर से भोज्य नाम की कन्या हर लाया।जब शैब्या ने पति के रथ पर उस कन्या को देखा तब वह चिढ़कर अपने पति से बोली कपटी मेरी बैठने की जगह पर आज किसे बैठा कर लिये आ रहे हो ज्यामघ ने कहायह तो तुम्हारी पुत्रवधू है।शैब्या ने मुस्कुराकर अपने पति से कहा।मैं तो जन्म से ही बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। फिर यह मेरी पुत्रवधू कैसे हो सकती है।ज्यामघ ने कहा रानी तुम को जो पुत्र होगा उसकी यह पत्नी बनेगी। राजा ज्यामघ के इस वचन का विश्वेदेव और पितरों ने अनुमोदन किया।फिर क्या था समय पर शैब्या को गर्भ रहा और उसने बड़ा ही सुन्दर बालक उत्पन्न किया। उसका नाम हुआ विदर्भराज।उसी ने शैब्या की साध्वी पुत्रवधू भोज्या से विवाह किया

2 comments :

Rajput said...

bahut khubsurat jankari, ese sahej kar rakhna jaruri hai

राजपुताना इतिहास के विलुप्त अध्याय said...

विक्रम दादा जरुर सा सहेज कर रखेगे सा!

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