सात्वत के पुत्रो से जो वंश परंपरा चली उनमें सर्वाधिक
विख्यात वंश का नाम है वृष्णि-वंश था। इसमें सर्वव्यापी भगवान श्री
कृष्ण ने अवतार लिया था जिससे यह वंश परम पवित्र हो गया। वृष्णि के दो रानियाँ थी -एक नाम था गांधारी और दूसरी का माद्री। माद्री के एक देवमीढुष नामक एक
पुत्र हुआ। देवमीढुष के भी मदिषा और
वैश्यवर्णा नाम की दो रानियाँ थी। देवमीढुष
की बड़ी रानी मदिषा के गर्भ दस पुत्र हुए, उनके नाम थे -वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, आनक, सुजग्य, श्यामक, कंक, शमीक,
वत्सक और वृक। उनमें वसुदेव जी सबसे बड़े थे। वसुदेव
के जन्म के समय देवताओं ने प्रसन्न होकर
आकाश से पुष्प की वर्षाकी थी और आनक तथा
दुन्दुभी का वादन किया था। इस कारण
वसुदेव जी को आनकदुन्दु भी कहा जाता है। श्रीहरिवंश पुराण में वसुदेव के
चौदह पत्नियों होने का वर्णन आता है उनमें रोहिणी, इंदिरा, वैशाखी, भद्रा और सुनाम्नी नामक पांच पत्नियाँ पौरव वंश से, देवकी
आदि सात पत्नियाँ अन्धक वंश से तथा सुतनु
तथा वडवा नामक, वासूदेव की देखभाल करने वाली,दो स्त्रियाँ अज्ञात अन्यवंश से थीं।
उग्रसेन के बड़े भाई देवक के देवकी
सहित सात कन्यायें थी। उन सबका विवाह
वसुदेव जी से हुआ था। देवक की छोटी कन्या
देवकी के विवाहोपरांत उसका चचेरा भाई कंस
जब रथ में बैठा कर उन्हें घर छोड़ने जा
रहा था तो मार्ग में उसे आकाशवाणी से यह
शब्द सुनाई पडे -हे कंस तू जिसे इतने
प्यार से ससुराल पहुँचाने जा रहा है उसी
के आठवे पुत्र के हाथों तेरी मृत्यु होगी।देववाणी सुनकर कंस अत्यंत भयभीत
हो गया और वसुदेव तथा देवकी को
कारागार में बंद कर दिया।महायशस्वी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी
कारागार में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने
देवकी के गर्भ से अवतार लिया और वसुदेव जी को
भगवान श्रीकृष्ण के पिता होने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ।वसुदेव के एक
पुत्र का नाम बलराम था। बलराम जी श्रीकृष्ण के
बड़े भाई थे। उनका जन्म वसुदेव की एक अन्य पत्नी रोहिणी के गर्भ से हुआ था।रोहिणी गोकुल में वसुदेव के
चचेरे भाई नन्द के यहाँ गुप्त रूप से रह रही थी। श्रीकृष्ण और बलराम की विस्तृत
जीवनी आपको आगे कही पर वर्णित करेँगे। देवमीढुष
की दूसरी रानी वैश्यवर्णा के गर्भ से पर्जन्य नामक पुत्र हुआ। पर्जन्य के नन्द
सहित नौ पुत्र हुए उनके नाम थे - धरानन्द, ध्रुवनन्द , उपनंद, अभिनंद,
.सुनंद, कर्मानन्द , धर्मानंद , नन्द और वल्लभ। नन्द
से नन्द वंशी यादव शाखा का प्रादुर्भाव
हुआ। नन्द और उनकी पत्नी यशोदा ने गोकुल
में भगवान श्रीकृष्ण का पालन-पोषण किया। इस कारण
वह आज भी परम यशस्वी और श्रद्धेय
हैं। वृष्णिवंश की इस वंशावली से ज्ञात
होता है कि वसुदेव और नन्द वृष्णि-वंशी
यादव थे और दोनों चचेरे भाई थे।
यादवो ने कालान्तर मे अपने केन्द्र दशार्न, अवान्ति, विदर्भ् एवं महिष्मती मे स्थापित कर लिए।बाद मे मथुरा और
द्वारिका यादवो की शक्ति के महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली केन्द्र बने। इसके अतिरिक्त
शाल्व मे भी यादवो की शाखा स्थापित हो गई।मथुरा महाराजा उग्रसेन के अधीन था और
द्वारिका वसुदेव के। महाराजा उग्रसेन का पुत्र कंस था और वासुदेव के पुत्र श्री
कृष्ण थे।
महाराज यदु से यदुवंश चला। यदुवंश मे यदु की कई पीढ़ियों के बाद भगवान् श्री
कृष्ण माता देवकी के गर्भ से मानव रूप में अवतरित हुए। पुराण आदि से प्राप्त
जानकारी के आधार पर सृष्टि उत्पत्ति से यदु तक और यदु से श्री कृष्ण के मध्य
यदुवँश वन्शावली इस प्रकार है:-
परमपिता नारायण
ब्रह्मा
अत्रि
चन्द्रमा
( चन्द्रमा से चद्र वंश चला)
बुध
पुरुरवा
आयु
नहुष
ययाति
यदु
(यदु से यदुवंश चला)
क्रोष्टु
वृजनीवन्त
स्वाहि (स्वाति)
रुषाद्धगु
चित्ररथ
शशविन्दु
पृथुश्रवस
अन्तर(उत्तर)
सुयग्य
उशनस
शिनेयु
मरुत्त
कन्वलवर्हिष
रुक्मकवच
परावृत्
ज्यामघ
विदर्भ्
कृत्भीम
कुन्ती
धृष्ट
निर्वृति
विदूरथ
दशाह
व्योमन
जीमूत
विकृति
भीमरथ
रथवर
दशरथ
येकादशरथ
शकुनि
करंभ
देवरात
देवक्षत्र
देवन
मधु
पुरूरवस
पुरुद्वन्त
जन्तु (अन्श)
सत्वन्तु
भीमसत्व
भीमसत्व के बाद यदवो की मुख्य दो शाखाए बन गयी
(1)-अन्धक ......और....(2)-बृष्णि
कुकुर......देविमूढस-(देविमूढस के दो रानिया थी)
धृष्ट .............................
कपोतरोपन......................
विलोमान........................
अनु................................
दुन्दुभि...........................
अभिजित.........................
पुनर्वसु.............................
आहुक..............................
उग्रसेन/देवक .....शूर
कन्स/देवकी ...वासुदेव
श्रीकृष्ण
ष्णि वंश
भीमसत्व के बाद यदुवँश राजवंशो की प्रधान शाखा से दो मुख्य शाखाए बन गई-पहला
अन्धक वंश और दूसरा वृष्णि वंश अन्धक वंश में कंस का जन्म हुआ तथा वृष्णि वंश में
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था