Sunday, 11 August 2013

क्षत्रिय बुध और इला

बुध ओर ईला बुध चन्द्रमा का पुत्र था। वह बहुत रूपवान और शक्तिशाली था। उनका जन्म तारा की कोख से हुआ। तारा देवताओं के गुरु वृहस्पति की पत्नी थी। एक बार चन्द्रमा ने, जो महर्षि अत्रि के पुत्र थे, वृहस्पति की इस पत्नी का हरण करके अपनी पत्नी बना लिया। इंद्रआदि देवों के समझाने के उपरान्त जब चंद्रमा ने तारा को नहीं लौटाया तो इंद्र सेना लेकर युद्ध के लिए आमादा हो गए। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। वे देवगुरु वृहस्पति से द्वेष रखते थे। इस कारण चंद्रमा की सहायता के लिए अपनी विशाल एवं शक्तिशाली सेना लेकर इंद्र से युद्ध करने के उद्देश्य से शुक्राचार्य भी मैदान में आ डेट। परिणाम स्वरुप तारा के लिए इस देव-असुर संग्राम आरम्भ हो गया और धीरे-धीरे उसने भयंकर रूप धारण लिया और चारो तरफ भय व्याप्त हो गया। तब लोग बीच-बचाव करने के लिए ब्रह्माजी की शरण में गए। ब्रह्मा जी इस संग्राम को समाप्त करवाने में सफल हुए। उनके समझाने पर चंद्रमा ने तारा को लौटा दिया जिससे वह पुनः अपने पति वृहस्पति के पास आगयी। इस दौरान तारा गर्भवती हो गई थी। वृहस्पति को जब यह ज्ञात हुआ कि उसकी पत्नी दुसरे का गर्भ धारण करके आई है तब वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने तारा को कठोर शब्दों में बहुत भला-बुरा कहा और आज्ञा देते हुए उससेकहा - "मेरे क्षेत्र में दूसरे का गर्भ सर्वथा अनुचित है तुम इसे जल्द दूर करो।" तब तारा ने झाड़ियों के मध्य जाकर गर्भ को गिरा दिया। लेकिन जिस गर्भ को तारा ने झाड़ियों में गिराया वह बहुत सुन्दर रूपवान तेजस्वी बालक निकला। उसके सुन्दर रूप को देखकर वृहस्पति और चंद्रमा दोनों ललचा गए और दोनों ने अपना पुत्र बनाना चाहा। इससे दोनों में विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया की उनको बीच बचाव के लिए पुनः देवताओं की शरण में जाना पड़ा। देवताओं ने तारा से यह जानने का भरसक प्रयत्न किया कि उसके गर्भ से उत्पन्न यह बालक किसका है,किन्तु लज्जावश तारा चुप-चाप खड़ी रही और कुछ बोल नहीं सकी। ब्रह्मा ने भी उसको बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उसने किसी को कुछ नहीं बताया। देवतावो के के बहुत पूछने पर भी तारा ने अपना मुंह नहीं खोला। उसके गर्भ से उत्पन्न बालक भी उस समय वहां मौजूद था। अपनी माता के इस आचरण से वह क्रोधित हो गया। क्रोध भरे कठोर शब्दों में डांटते हुए उसने अपनी माता से कहा -" तुम शीघ्र सारी सच्चाईबता दो नहीं तो मैं तुम्हें शाप दे दूंगा।" बालक के मुख से यह शब्द सुनकर सभी अचंभित रह गए। शाप देने के बाद तारा का अहित होगा -यह सोच करब्रह्मा जी उस बालक को ऐसा करने से रोक दिया और उसकी माता को पुनः समझाने का प्रयास किया। इस बीच अपनेपुत्र के फटकारने से तारा भयभीत हो चुकी थी। इसलिए उसने ब्रह्मा की बात मान ली और सब कुछ सच सच बता दिया। उसने कहा - "मेरे गर्भ से उत्पन्न यह बालक चंद्रमा का पुत्र है।" अपने पुत्र की बुद्धिमत्ता देखकर चंद्रमा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंनेउसकी बहुत प्रशंसा की और गले लगाया। वे बोले -"वत्स! तुम बहुत बुद्धिमान हो इसलिए मैं तुम्हारा नाम 'बुध' रखताहूँ" तब से वह बालक चन्द्रमा का पुत्र कहलाया और बुध के नाम से ख्याति प्राप्त की। बुध को चंद्रमा का पुत्र माना गया इसलिए वे चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाये। यदि उनको महर्षि वृहस्पति का पुत्र माना जाता तो वे ब्रह्मण कहलाते। बुध का स्वरुप अत्यंत सुंदर और मनमोहक था। इसी कारण महर्षि वृहस्पति तारा को गर्भवती देख कर पहले तो क्रोधित हो गए, परन्तु जन्म के बाद जब देखा कि यहतो सुन्दर सुवर्णमय रूपवान बालक है तब वह मुग्ध हो गए तथा उसे अपना पुत्र बनाना चाहा। बुध का विवाह सूर्यवंशी राजकुमारी इला से हुआ था। इला का जीवन परिचय नीचे की पक्तियों में देखें। इला ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में ज्येष्ठ महर्षि मरीचि थे। मरीचि केएक पुत्र का नाम कश्यप था। कश्यप के पुत्र का नाम विवस्वान था।विवस्वान का अर्थ सूर्य है।विवस्वान(सूर्य) के मनु नामक एक पुत्र हुआ इला इसी मनु की पुत्री थी। मनु की अनेक संताने थीं, किन्तु उनमें इक्ष्वाकु नामक पुत्र और इला नामक पुत्री मुख्य माने जाते हैं। इक्ष्वाकु के वंशज सूर्यवंशी क्षत्रिय और उसकी बहन इला के वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाये। सूर्य वंश में भगवान श्रीराम का और चन्द्रवंश में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। इला का जन्म सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में हुआ और विवाह चंद्रवशी क्षत्रिय कुल में बुध से हुआ । बुध चंद्रमा का पुत्र था। इसी कुल में आगे चलकर यदु का जन्म हुआ और उनके वंशज यदुवँशी क्षत्रिय कहलाये ।पुराण आदि ग्रंथों में वर्णन आता है कि इला पहले सुदुयम्न नामक पुत्र था। एक दिन वह शिकार करते हुए मेरु पर्वत की तलहटी में जा पहुंचा | भगवान शंकर के शाप के कारण उस वन में जाने वाला हर पुरुष स्त्री हो जाता था। इस कारण सुदुयम्न भी अपने अनुचरों सहित स्त्री हो कर वन में विचरने लगा । उसी समय शक्तिशाली बुध ने देखा कि मेरे आश्रम के पास बहुत से स्त्रियों से घिरी हुई एक रूपवान रमणी विचर रही है। उन्होंने इच्छा जाहिर की क़ि यह सुन्दरी मुझे मिल जाये। उस सुन्दरी ने भी बुध को अपना पति बनाने की इच्छा प्रकट की। इस प्रकार बुध ने इला से विवाह कर लिया और कुछ समय बाद उनके परुरवा नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। ऐसा वर्णन भी आता है क़ि गुरु वशिष्ठ द्वारा भगवान शंकर की आराधना करने पर भगवान् शंकर ने सुद्युम्न को एक महीना पुरुष व एक महीना स्त्री रहने का वर दिया| बुध चन्द्र वंशी क्षत्रिय थे बुध के पुत्र का नाम पुरुरवा था। पुरुरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति, ययाति से यदु उत्पन्न हुए। यदु से यदुवंश चला। यदु की कई पीढ़ियों के बाद यदु कुल में माता देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण ने मानव रूप में अवतार लिया

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